डॉ. हिमानी पांडेय , आयुर्वेदाचार्य ( BAMS )
पीलिया ( Jaundice ) कैसे होता है? पीलिया के लक्षण ,कारण और इलाज? What Causes Jaundice?
कुछ बीमारियां जो पहले बहुत कम पाई जाती थीं पर अब बहुत देखने को मिलती है। उनमें से एक है Jaundice। आयुर्वेद में इसे कामला के नाम से जाना जाता है। देखा जाय तो यह बीमारी न होकर एक लक्षण है जिसमें यकृत ( Liver ) में सूजन आ जाने के कारण शरीर में पीलापन आ जाता है। कामला में पीलापन सबसे पहले नेत्रों के Cunjunctiva में दिखता है और फिर शरीर के अन्य भागों में दिखता है।
क्या हैं कारण –
1. दूषित खान-पान।
2. सफाई का ध्यान नहीं रखना।
3. अधिक मद्यपान सेवन।
3. यकृत (Liver) में कोई विकार होना।
4. रक्त में पाए जाने वाले हीमोग्लोबिन का अधिक मात्रा में टूटना।
क्या हैं लक्षण –
हारिद्रनेत्रः स भृशं हारिद्रत्वड्नखाननः।
रक्तपीतशकृन्मूत्रो भेकवर्णो हतेन्द्रियः।। ( च. चि. 35/16)
कामला रोग से पीड़ित व्यक्तियों का नेत्र हल्दी के समान पीला हो जाता है। त्वचा, मुख, नख का वर्ण भी हल्दी के समान पीला हो जाता है। मल एवं मूत्र रक्तमिश्रित पीले वर्ण के निकलते हैं। रोगी का शारीरिक वर्ण बरसाती मेढ़क के समान हो जाता है। उसकी इन्द्रियां अपने विषयों को ग्रहण करने में असमर्थ हो जाती हैं।
कामला आयुर्वेद में दो प्रकार से वर्णित है-
1. कोष्ठाश्रित कामला-रक्त मंे पाया जाने वाला हीमोग्लोबिन सामान्य प्रक्रिया से बाइल पिग्मेन्ट (Bile Pigment) में टूटता है जो Liver से फिल्टर होकर मल द्वारा बाहर निकलता है, पर जब यही बाइल पिग्मेन्ट अधिक मात्रा में बनने लगे या फिर यकृत में विकार के कारण बाइल पिग्मेन्ट का उचित मात्रा से फिल्टर नहीं हो पाए तो इन कारणोें से जो शरीर में पीलापन होता है उसे कोष्ठाश्रित कामला की श्रेणी में रखा जाता है।
2. शाखाश्रित कामला – इसे Surgical Jaundice भी कहा जाता है। इसमें पित्त की थैली या उसकी नली में पथरी या यकृत में कैंसर (Cancerous) या अन्य विकार की वजह से अवरोध उत्पन्न हो जाने के कारण शरीर में पीलापन आ जाता है।
क्या खाना चाहिए ? –
1. ताजे फल एवं सब्जियों का प्रयोग करें।
2. गन्ने का रस, फलों का रस प्रयोग करें।
3. किशमिश का प्रयोग करें।
4. नीबू का रस, मूली का रस, करेले का रस, चुकन्दर, आंवले का रस लें।
5. पका केला शहद के साथ लें।
6. छाज तभी लें जब उसमें से मक्खन निकाल दिया हो।
क्या नहीं खाना चाहिए ? —
1. तेल, मिर्च, मसालों का प्रयोग ना करें।
2. दही ना ले।
3. ऐसी चीजों का परहेज करें जो पचने में दिक्कत करें। जैसे- मांस, मछली, आदि।
4. भुट्टा, उड़द, आलू, फूलगोभी, बैंगन आदि का प्रयोग ना करें।
5. फलों में पपीता, आम, अमरूद का प्रयोग ना करें।
6. चाय, काॅफी बन्द कर दें।
कैसे करें चिकित्सा ?-
चिकित्सा का मुख्य उद्देश्य होता हो कि यकृत पर कार्य का भार कम पड़े। इसके लिए परगेटिव (Diuretic) का प्रयोग किया जाता है। मूत्रल ;क्पनतमजपबद्ध द्रव्य भी दिया है जिससे ज्यादा मात्रा में बढ़े हुए वाइल को शरीर से बाहर निकाल जा सके। औषधियों में आरोग्यवर्धनी वटी, पुर्ननवा मण्डूर, अविपत्तिकर चूर्ण, फलात्रिकादि क्वाथ आदि का प्रयोग किया जाता है। चिकित्सक के परामर्शानुसार औषधियों का प्रयोग करें।
क्या रखें सावधानी ?-
1. भोजन समय से लें।
2. मिर्च, मसाले, घी, तेल नहीं लें।
3. सुपाच्य भोजन लें।
4. सब्जियों एवं फलों को धोकर प्रयोग में लें।
5. खूब पानी पिएं।
6. स्वच्छता का ध्यान रखें।