मुहांसे-कारण एवं निवारण
डॉ० हिमानी पांडेय, बी.ए.एम.एस. नैनीताल- मुहांसों का वर्णन हमारे वेदों में नाम मात्र को देखने को मिलता है, इसका मुख्य कारण यह हो सकता है कि उस समय यह समस्या उतनी गम्भीर नहीं थी लेकिन आज की आधुनिक जीवन शैली में मुहांसे होना एक आम समस्या हो गई है। यह मनुष्य के शारीरिक स्वास्थ्य के साथ मानसिक स्वास्थय पर भी प्रभाव डालती है।
सेमल के तने में जो कांटे होते हैं , उसकी तरह पीड़ादायक , और अनेक मुखमण्डल को दूषित करने वाली पीडिकाओं को मुखड़ोशिका कहा जाता है। इसे आयुर्वेद में तारुण्य पिटिका , यौवन पीड़िका , युवान पिटिका नामों से भी जाना जाता है। इसे अंग्रेजी में Acne Vulgaris भी कहा जाता है। यह रोग युवावस्था में ज्यादा देखा जाता है। प्रदुषण , तला भुना , खट्टा , मिर्च मसालेदार , कास्मेटिक , चिंता, क्रोध , बालों में रुसी , हार्मोन की अनियमितता , पाचन संस्थान में विकृति होना जैसे कि कब्ज आदि इसके मुख्य कारण हैं।
यह मुख्यतः छाती, मुख, पीठ मिलती है। आयुर्वेदा में लेप, आभ्यंतर औषधि, प्राणायाम की सहायता से कील मुंहासों से आराम पाया जा सकता है।
कारण –
शरीर पर मुहांसों का होना यह दर्शाता है कि हमारी पाचन क्रिया दुरुस्त नहीं है। अनियमित खान-पान, अग्नि का मन्ध होना , उष्ण पदार्थों का अधिक मात्रा में सेवन, कब्ज आदि कारण मुहांसों की उत्पत्ति से जुड़े हैं।आधुनिक चिकित्सा में हार्मोन -इंडोजन को इसका मुख्य कारण माना गया है। यह हार्मोन यौवनावस्था के दौरान अधिक सक्रिय होते हैं। जब अधिक हार्मोन -इंडोजन निर्मित होते हैं तो चर्बी की ग्रान्थियाँ अधिक चर्बी का उत्पादन शुरु करती है। इसके परिणाम स्वरुप मुंहासों की उत्पत्ति शुरु हो जाती है। अगर सूक्ष्म स्तर से देखें तो चर्बी की ग्रंथियां एक चिकने पदार्थ का निर्माण करती है जो त्वचा और बालों की सुरक्षा,उन्हें मुलायम बनाए रखने और नमी तथा गर्मी से सुरक्षा प्रदान करने के लिए आवश्यक है। चर्बी की ग्रंथियां चर्बी को त्वचा के पर्त तक ले जाती हैं। यह चर्बी त्वचा पर स्थित लगभग अदृश्य छोटे बाल में सुरक्षित होती है। चर्बी की प्रत्येक ग्रंथि त्वचा पर स्थित बाल से सीधे सम्पर्क में होती है। चर्बी की ग्रंथियां त्वचा के ठीक नीचे पाईं जाती हैं किन्तु मुख्यतः ये चेहरे, गर्दन, छाती, पीठ पर होती है। ये शरीर में कहीं भी होती है किन्तु छोटी मात्रा में इन हिस्सों में इन ग्रन्थियों की सान्द्रता 400 से 900 ग्रंथियां प्रतिवर्ग सेन्टीमीटर, जबकि अन्य हिस्सों में 100 ग्रन्थियां प्रतिवर्ग से.मी. होती है। जहाँ चर्बी ग्रंथियों की सांद्रता अधिक होती है, मुंहासे भी वहीँ अधिक होते हैं।
जाने मुंहासे ( Pimples ) के कारण , आयुर्वेदिक चिकित्सा practical tips के साथ
मुहांसों का होना और कालावधि आनुवांशिकता से प्रभावित होती है। यह स्त्री और पुरुष दोनों को प्रभावित करती है। मुहांसों की समस्या यौवनावस्था से ही देखने को मिल जाती है। मुहांसे मह्विलाओं के मुख्यतः चेहरे, गर्दन, कन्धों पर होते है और पुरुषों केकन्धों, छाती के ऊपरी हिस्से और पीठ पर भी होते हैं। जो लोग स्वस्थ वातावरण में रहते हैं उन्हें मुहांसों की समस्या कम होती है लेकिन औद्योगिक क्षेत्र में रहने वाले लोगों में यह समस्या ज्यादा देखने को मिलती है।
क्या हैं चिकित्सा–
1 . सोते समय त्रिफला चूर्ण, गुनगुने जल के साथ सेवन करें।
2. काशीशादी तैल का बाह्य प्रयोग करें।
3.महामंजिष्ठादि क्वाथ 2-2 चम्मच बराबर मात्रा में जल के साथ खाने के बाद सेवन करें।
4. गन्धक रसायन, रसमाणिक्य, आरोग्य- वर्धनी वटी आदि औषधियों का प्रयोग किया जाता है।
5. चिकित्सक के परामर्शानुसार औषधियों का प्रयोग करें।
क्या करें-
1. फल एवं सब्जियों का प्रयोग करें।
2. पानी खूब पीएं ।
3. प्राणायाम एवं योगासन करें।
4. मन को स्वस्थ रखें।
5. भोजन में सलाद का प्रयोग करें।
क्या न करें-
1. खा्नें में मिर्च-मसालों से बचें ।
2. ज्यादा खट्टी चीजों को ग्रहण न करें।
3. घी – तेल का खाने में इस्तेमाल कम से कम करें।
4. उष्ण प्रदार्थों का सेवन कम कर दें। जैसे- अण्डा, मछली, आदि।
ज्यादा जानकारी के लिए पूरा वीडियो देखें , एवं किसी भी प्रश्न के लिए हमे नीचे दिए ईमेल पर संपर्क करें : Email : himanayurveda@gmail.com