छिद्रोदर को आधुनिक चिकित्सा में Perforated Abdomen के नाम से जाना जाता है. इसकी व्याख्या करते हुए आचार्याें ने कहा है कि जब मनुष्य पत्थर, कंकर आदि विजातीय पदार्थों का भोजन के साथ सेवन करता है और आंतों में अगर तिरछी स्थिति में हो तो आंतों में छेद हो जाते हैं, जिससे आंतों में स्थित तरल पदार्थ बाहर निकलने लगता है। जब द्रव (तरल पदार्थ) से उदर Abdomen पूर्ण रूप से भर जाता है तो आंत जल में तैरने की भांति प्रतीत होता है। एकत्रित हुआ द्रव बाद में जलोदर Ascites का रूप धारण कर लेता है।
आयुर्वेद में उदर रोग की अन्तिम अवस्था में जलोदर का वर्णन किया गया है। आधुनिक विज्ञान में इसे Ascites के नाम से जाना जाता है। यह अत्यन्त ही घातक बीमारी है। आयुर्वेदिक मतानुसार स्नेह जैसे – घी, तेल आदि पीने के बाद अथवा मन्दाग्नि वाले मनुष्य या दुर्बल या अत्यन्त कृश व्यक्ति मात्रा से अधिक जल का सेवन करते हैं तो उनकी पाचन शक्ति नष्ट हो जाती है और स्रोतस Channels के बन्द हो जाने से जल और कफ दोष दोनों उदर में जलीयांश की वृद्धि करते हैं, जिससे जलोदर की उत्पत्ति होती है।
लक्षण- भोजन में अनिच्छा, प्यास की वृद्धि होना, गुद Anus मार्ग से जल का स्राव होना, दुर्बलता, उदर के ऊपरी भाग में नाना प्रकार की रेखाओं या सिराओं का व्याप्त होना, स्पर्श करने पर जल से भरे हुए मटके के समान उदर में अनुभूति होना अर्थात् अगर पेट के एक भाग में हाथ रखे और दूसरे भाग पर अंगुलियों से ताड़न करें तो दूसरे हाथ के हथेली पर जलतंरग का अनुभव होता है।
बचाव-
1. मद्ययपान सेवन नहीं करें।
2. एक ही जगह में बहुत देर तक नहीं बैठें ।
3. दिन में नहीं सोए।
4. ज्यादा मात्रा में स्नेह खाने के बाद जल का सेवन नहीं करें।
क्या लें-
1. छांछ लें।
2. ऊँट का दूध लें।
3. शहद लें।